उम्र न गुजरें don’t age
अपनी सीमित आय के रहते हुए भी कुशन बाबू ने जब घर बनवाना शुरू किया तो उन्होंने भविष्य को ध्यान में रखकर आपने दोनों बेटों के लिए दो हिस्सों में घर बनवाया, जितनी जगह निचे के हिस्से में रखी, उतनी ही उपर की मंजिल में भी रखी। दो हिस्सों का मकान बनवाते समय एक बात कुशन बाबू के जेहन में थी कि दोनों बेटों को यदि अपना अलग घर बसाना पड़ा तो जगह कम नहीं पड़ेगी।
“अरे कुशन बाबू, अभी तो जीवन शुरू हुआ है क्यों इतनी बड़ी जिम्मेदारी सर पर ले रहे हो,”.. आफिस में एक दिन …बड़े बाबू सरन पान्डे ने कह भी दिया।
“ऐसा है सरनजी, समय रहते घर की व्यवस्था हो जाये तो बेफिक्री हो जायेंगी,”…कुशन बाबू ने अपने को ही शाबाशी देते हुए कहा।
“घर तो बनेगा ही लेकिन इस समय भाभी के साथ, हाथों में हाथ डाल कर, पहाड़ों की सैर करें, जीवन का लुफ्त उठाते,”… दार्शनिक अंदाज में सरन बाबू मुस्कुराते हुए बोले थे।
कुशन बाबू ने पत्नी के साथ सुनहरे सपनों को भी ताक पर रख दिया, और तमाम उम्र घर के लिए बैंक का लोन देने में गुजार दिया।
समय बदला, बेटों की शादी हुई, कुछ समय के बाद घर के दो हिस्से हो गए, कुशन बाबू और उनकी पत्नी के लिए घर में जगह ही नहीं बची थी, कोई एक बेटा दोनों को रखने को तैयार नहीं है, तो तय हुआ कि दोनों बेटे एक-एक को रखें।
बुढ़ापे में साथ रहने का सुख पाने का जो इतने वर्षों से सपना पत्नी ने सजा रखा था वह भरभरा कर गिर गया, पति पत्नी को साथ रहने के लाले पड़ने लगे, सुख, दुःख बांटनें के भी मौके मिलने मुश्किल हो गये।
स्वस्थ्य होते हुए भी पारिवारिक उलझन भरे माहौल में कुशन बाबू और उनकी पत्नी तनावग्रस्त रहने लगे, दो वर्ष के अन्दर ही एक माह के अंतराल से कुशन बाबू और उनकी पत्नी स्वर्ग चले गये, बेटों को अपनी उलझन से मुक्त करने के साथ ही उनके जीवन को सहजता प्रदान कर गये।
एक पीढ़ी घर बनाने में स्वाहा हो गई, किस स्वर्ग, नर्क की बात की जाती है, जो निर्माणकर्ता है वह गर्दिश में ही रहता है, न सुख की अनुभूति रही न ही संतोष का परचंम लहराया और जीवन चूक गया।
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