हरसिंगार
साजो-सामान
चीख पुकार
कितनी रौनक
है कोई तीज-त्यौहार
हरियाली में
घुसती रेल
भर दी मांग
यही दरकार
पीली रोशनी
आभास कराती
जैसे होटल में
बैठा दिलदार
डूब ही जाये
मन करता
रसभरी ध्वनी
सुमधुर लच्छेदार
उबड़-खाबड़
रास्ते हिचकोले
में गूंजती
पायल की झंकार
लम्बे सफर की
मधुरम रात
सुबह की बेला
पहुँचे नये
शहर के द्वार
चला कारवां
नई मंजिल
फिर बसावट
करके सोलह श्रृंगार
हर डगर, हर नगर
चल दे पगडंडी
बसें बस्ती
मन के आंगन
हरदम फूले हरसिंगार।
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