कविता

 फिक्र

हम तुम
साथ चले थे
ऊंचाइयों की ओर
कितना समय बीता
मिलन नहीं हुआ
फिर कभी और
शायद किसी
मुकाम पर तो मिलगे
यही सोच कर
चलते रहे
दीपक से जलते रहे
दर्द को सीते रहे
फिर भी क्या पता
मिलेंगे भी कभी
किसी ठोर
किसी डगर
हमें गम नहीं
कि तुम आगे
निकल गए
दुख इस बात का है
कि पीछे मुड़कर
भी न देखा ।

© A