ग़ज़ल
खुली वादियों में अगर हम भी जाते,
खुशी के तराने ये लब गुनगुनाते ।
अगर मंजिलों की तलब उनको होती,
तो राही भटक न यूँ राहों में जाते ।
मेरी बात को ध्यान से तुम सुनो जी,
कभी फिर मिलेंगे यूँ ही हँसते गाते ।
मुझे तुम कहीं चाहते जो ज़रा भी,
न होली मेरी हसरतों की जलाते ।
सनम ना हमारा अगर रुठता तो,
हमारे चमन में भी गुल खिलखिलाते ।
©A