लघुकथा....सच तो है

 सच तो है

नीलू का जैसे-जैसे डिलीवरी के टाइम पास आ रहा है, वह अंदर से बहुत घबरा रही है, उसे अपनी सास की उम्मीदों पर खरे उतरने का अंजाना डर बना हुआ है, क्योंकि उसकी सास चाहती कि अब की बार बेटा हो जाये तो परिवार पूरा हो जाये, नीलू को यही डर है कि सास की इच्छा पूरी नहीं हुई तो क्या होगा।

“दूसरी लड़की भी जन दी, हाय रे… यह बहु तो हमारे कुल को मिटाकर ही दम लेगी,” …सांस अपनी जिह्वा जहरीले तीरों की बौछार छोड़ती बहू को भेद रही है।

घर में प्रवेश करते बेटे ने जब यह शब्द सुनने तो बौखला गया।

“अम्मा, मुझे बेटी ही चाहिए, तुम्हारी बहू तो इसी डर से दूसरा बच्चा पैदा ही नहीं करना चाहती थी,”…बेटे ने कहा।

“बेटा, कुल का दीपक तो होना चाहिए,”… मां ने तर्क दिया।

“किस कुल की बात कर रही हो मां, आपको मेरे परदादा का नाम पता है, उनके बच्चों की कोई जानकारी है, कहाँ है वह,”….बेटे ने मां की ओर प्रश्न उछाला।

मां चुप है, रिश्तेदारों के पीछे की श्रृंखला तो आज कहा होगी कुछ पता ही नहीं, जीवन की आपाधापी में रोजी कमाने की जुगाड़ों में ही तमाम उम्र स्वाहा हो गई, ऊपर से अगर आप निर्धन है तो आप से कोई संबंध भी रखना नहीं चाहता।

“चुप क्यों हो मां,”…

“मां, हम जिस में खुश रह सकते हैं, हमें वही करना चाहिए, मुझे बेटियाँ ही चाहिए, यह तो ईश्वर की देन है, वह हमें किस खुशी से नवाज़ता है,”….बेटे ने खुश होकर कहा।

“तुम सच कहा रहे हो बेटा,….मां उठकर अपनी बहुमूल्य निधी बहू और पोती को देखने अंदर चली गई।

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