आँचल
“आज तुझे खाने को नहीं दूँगा, कल मस्ती दिखा रहा था, काम करते समय हाथ नहीं चलते,”… हलवाई ने मुन्ना को दो-तीन चाटे जड़ दिए।
रात को फर्श पर सोया मुन्ना सुबह अकड़ गया है, सोच रहा है घर से भाग कर उसने अच्छा नहीं किया, एक-दो दिन में ही वह यह जान गया है कि अम्मा कितना ही क्यों न मारे, खाने को तो समय पर दे ही देती है।
हलवाई की तिरछी आँखें देखकर मुन्ना जल्दी-जल्दी बर्तन साफ करने लगा, भूख भी लगी है, पता नहीं यह मोटा सेठ कब खाने को देगा, बर्तन साफ कर मुन्ना ने सेठ कि ओर आशा भरी नजर से देखा तो सेठ ने उसे अनदेखा कर दिया।
बराबर अपनी तरफ ताकता हुआ जानकर सेठ ने उसे जोर से एक चपत लगाई ।
“नजर लगाएगा बे, चल परे हट,”.. झाड़ू लगाने दे रामू को।
मुन्ना डरकर एक तरफ सरक गया, आखिरकार दोपहर का एक भी बज गया, सेठ ने उसे खाना नहीं दिया, अब मुन्ना भूख सहन नहीं कर पा रहा है, इस समय थोड़ी भीड़ भी कम है, उसने पास पड़ा लकड़ी का एक डंडा उठाया और कांच की अलमारी पर दे मारा, टोस्ट का पैकेट उठाया और यह जा और वह जा,…मुन्ना हवा से ताल मिलाते भाग गया।
सेठ चिल्लाता ही रह गया, मुन्ना तो सरपट इस गली से उस गली भागता गया, उसने भागते-भागते मन बना लिया कि घर वापस जाएगा, मां की मार, डांट उस सेठ की नफरत भरी नजरों से कहीं ज्यादा अच्छी है, मां जितना डाटती है, उससे कहीं ज्यादा प्यार भी करती है, मां से अच्छा इस दुनिया में कोई नहीं, जहाँ वह सुरक्षित है, सारी जमा-पूंजी ही उसकी मां है, उनके पास दुनिया का सबसे बेहतरीन शीतल आंचल जो है।
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