कहानी .....समझ कर समझ

 

समझ कर समझ

एक दिन अक्षय अपने पापा के पक्ष में बोलेगा, गलतियाँ गिनायेगा, उस में धैर्य की कमी बताएगा, उसके पापा को समझ न पाने की कमी है उसमें, उसी का नतीजा था कि वह पापा के प्यार से मेहरूम रहा, आज वह पढ़ाई के अंतिम वर्ष में जाकर समझ पाया कितनी गलत धारणा थी मम्मी के लिए।

जड़ हो गई वह, अरे यह क्या कह गया बेटा, जिसके लिए उसने कितनी कुर्बानी दी है, कैसे उसे दुष्ट पिता से पा लिया था, कितने जिल्लतों के बाद बचे कुचे साहस से अपने स्वाभिमान को बटोरा था, जीवन में एक ही साधना रही कि अक्षय को मां बाप दोनों का प्यार देकर काबिल बनाना।

फिर आज ऐसा क्यों कर बोल गया, कहाँ कमी रह गई, और यदि कमी है भी तो इतनी बड़ी बात, जिसकी कल्पना भी नहीं की थी उसने।

अक्षय उसे उटपटांग बोल कर बाहर निकल गया था और वह वहीं सोफे पर बैठ कर सोचने लगी, अक्षय की बुआ का इस शहर में आना ही शंकाओं का संदेश दे रहा था, वही बात सामने आ गई, हो सकता है अक्षय, बुआ के घर जाता हो, वहाँ से उसके खिलाफ भड़काया गया हो, क्योंकि इतने बुरे भी नहीं थे इसके पापा, किंतु इनके घर वाले कभी भी यह बात स्वीकार नहीं करते थे, हमेशा मेरी कमियाँ ही निकालना उन्हें अच्छा लगता था।

सत्या ने भी तो सभी से फरियाद की थी, क्या मिला, ढेरों आरोप प्रत्यारोप, चुन-चुन कर सत्या की कमियाँ गिनाई गई, उसके संस्कार, माता-पिता की परवरिश को लताड़ा गया, किसी ने भी अपने बेटे को, भाई को समझाने की कोशिश नहीं कि, सभी जैसे अपना पल्ला झाड़ कर दूर हो जाना चाहते थे। कोई भी सत्या के पक्ष में बोल कर, उनका बोलना उन पर ही भारी न पड़ जाये, इससे बचते बचाते रहे थे।

कैसे सत्या बिना किसी नौकरी के घर छोड़ आई थी, उसकी सहेली की मदद ने पैरों पर खड़ी हुई, और तब से आज तक अक्षय की पूरी लगन और इमानदारी से परवरिश कर रही है, फिर भी कमी रह गई, वर्षों पहले बोले गये रिश्तेदारों के शब्द, बेटे के मुँह से सुनकर वह जड़ हो गई।

वह उठी और पास पड़े पलंग पर निढाल हो लुढ़क गई, मन मानों भारी हो गया। आज ऑफिस भी न जाने की ठान ली, क्या करेगी इतना मर खप के, किसके लिए, सोचते ही उसकी आँखें छलछला आई।

इन आँसुओं को पोछने वाला भी आज तक कोई ऐसा नहीं मिला, जो उसके दर्द को समझ सकता, बहुत समय तक सोचते हुए आँसू अविरल बहते रहे, जब थक गई तब उठकर डायरी लेकर बैठ गई, बचा सारा संताप कागज पर उतारने लगी।

उसके व्यक्तित्व का दर्पण है यह डायरी, इससे सब कुछ कह देती है वह पूरा गुबार लिखकर निकाल वह उठी, घर में यूं ही बिना मतलब उठा-पटक करती रही, अपने अंदर के दर्द को कम करने के लिए वह शारीरिक श्रम करती रहती है जिससे उसे सुकून मिलता है।

कुछ देर बाद सोचा क्यों न आज मुरलीधर से मिले, जीवन में उलझने जब-जब आई मुरलीधर से चर्चा कर, सुलझा लेती है, एक सच्चा दोस्त भी कैसा जो राह चलते बन गया था, दोनों ने साथ कॉफी पीते हैं और छोटे बड़े मुद्दों पर बैठकर हल सोच लेते हैं, सत्या ने मुरलीधर को फोन किया शाम को मिलना तय हुआ।

शाम के पांच बज गए,अभी तक अक्षय कॉलेज से नहीं आया, कुछ खाकर भी नहीं गया है, न चाहते हुए भी सत्या को अक्षय की चिंता होने लगी, जाने कहाँ भटक रहा होगा, हो सकता है बुआ के घर जश्न मना रहा हो क्योंकि उसे दुख पहुँचाने की बुआ की एक चाल कामयाब जो हो गई है।

वह मुरलीधर से मिलने निकल गई, रात नौ बजे लौटी, तब तक अक्षय घर नहीं लौटा है, कई बार ऐसे मोड़ आए हैं जिंदगी में कि इस तरह की परेशानियों से रूबरू होती रही है, लेकिन जब से इसकी बुआ ने शहर में रहना शुरू किया है उसका दिल हर वक्त घबराता रहता है हमेशा डर बना रहता है कि अक्षय उसे गलत समझ कर कहीं उससे दूर न चला जाए। कैसी बेबसी है, क्या करें, कैसे बताएं, कैसे समझाएँ अक्षय को, वह इसी उधेड़बुन में बैठी रही, रात ग्यारह बजे अक्षय आया।

“अक्षय, खाना लगा दूं,”… सुदर्शना ने पूछा।

“नहीं खाना,”… कहता हुआ वह अंदर अपने कमरे में चला गया।

सुदर्शना को दुख के साथ गुस्से का पारा भी चढ़ गया, वह भी आपने कमरे में जाकर पलंग पर लेट गई, अक्षय से सुबह बात करेगी, सोचती रही, फिर जाने कितनी रात गये सो गई।

सुबह उठी तो देखा अक्षय पहले ही उठ गया है, सुदर्शना ने नाश्ता बनाया और ऑफिस के लिए तैयार होने लगी, अक्षय बैठक में ही बैठा पेपर पढ़ रहा है।

“अक्षय, कॉलेज नहीं जाना क्या ?”… अपने आप को संयत करते हुए सुदर्शना ने पूछा।

“चला जाऊँगा,”..कहकर वह पुनः पेपर पढ़ने लगा, उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि उसकी मम्मी वह जो देखता रहा है वह है, या बुआ जो बताती है वैसी है, इसी उलझन में जाने क्या-क्या कल कह गया वह मम्मी से।

“मैं, ऑफिस जा रही हूँ, तुम नाश्ता करके जाना अक्षय,” कहती हुई सुदर्शन ने पर्स उठाया और दरवाजे से बाहर निकल गई।

बहुत देर तक अक्षय सोचता रहा, मन तो पेपर में लग ही नहीं रहा है, एक तरफ पेपर फेंक, वह मम्मी के कमरे में जाकर खड़ा हो गया, फिर कुछ सोचता हुआ टहलने लगा, बैठ गया, खड़ा हो गया, टहलने लगा, पुनः बैठ गया, लेट गया, सिर को दोनों हाथों से दबाता रहा, सिरहानी को सर के नीचे से खींचा तो उसका सिर किसी कड़क वस्तु से टकराया, उठकर देखा तो डायरी, जिज्ञासा बस पन्ने पलटने लगा दिन, तारीख के साथ बहुत कुछ लिखा है, वह बीच में से पढ़ता रहा, उसे उत्सुकता जागी तो डायरी को शुरू से पढ़ना शुरू किया, पापा के साथ रहते ही मम्मी यह डायरी लिखती आ रही है।

यह डायरी कभी उसकी नजरों के सामने आई क्यों नहीं, कभी भी उसने मम्मी को इस में लिखते हुए नहीं देखा, इसके बारे में कभी मम्मी ने बताया ही नहीं।

जैसे-जैसे वह डायरी के पन्ने पढ़ता जाता, उसके पापा की ज्यादतियों के चिन्ह उसे मिलने लगे, एक जगह रिश्तेदारों में सभी के नाम लिखे हैं, किसने क्या कहा, क्या नहीं कहा, बुआ के बारे में भी लिखा है, वह आश्चर्य हुआ, बुआ जो बताती है उससे कितना भिन्न था मम्मी का जीवन। घोर आश्चर्य के समंदर में गोते लगाता अक्षय भूल गया कि कॉलेज जाना है, पूरी डायरी पढ़ने के बाद वह वही लुढ़क गया।

डायरी को दोनों हाथों के बीच दबा ली, घौर आश्चर्य और दर्द की ऐसी लहर उठी की वह फफक पड़ा। कितनी पीड़ा सही है मम्मी ने, पापा की यातनाएँ तो जहाँ उभर आई थी उनका जिक्र किया है, मेरी इतनी प्यारी मम्मी को पापा की बेरहमी का शिकार होना पड़ा हैं।

उसने भी तो उन्हें कल कितना दुखी कर दिया था, वह तो मम्मी को यही खड़ा छोड़ कर गया था, पता नहीं ऑफिस भी गई या नहीं, यह भी उसने जानना उचित नहीं समझा, हाय…यह उससे क्या हो गया।

वह बुआ की बातों में कैसे आ गया, उनके ऊपरी प्यार के प्रदर्शन ने उसे भ्रमित कर दिया, किंतु वह इतना कमजोर कैसे निकला, मम्मी की पूरी तपस्या पर पानी फेर दिया, लानत है मुझ पर…।

कितना दुखी हुई होंगी मम्मी। मुझमें और रिश्तेदारों में क्या फर्क रहा! निकला तो आखिर उन्हीं की तरह, उन्हीं का खून। अक्षय को बेहद गुस्सा आ रहा है खुद पर।

दोपहर के तीन बज गये, मम्मी पांच बजे तक आ जाएगी, वह उठ गया, घर व्यवस्थित करने लगा। उसने सुबह यह भी नहीं देखा कि मम्मी नाश्ता करके गई या नहीं, किचन मैं उनका टिफिन पड़ा है, इसका मतलब लंच भी नहीं ले गई, शायद कल भी कुछ नहीं खाया होगा, सोचता वह बाजार गया, सब्जी,फल लेकर आया, मम्मी की पसंद का खाना तैयार किया और इंतजार करने लगा।

“आज जल्दी आ गए कॉलेज से बेटा, सुबह नाश्ता किया था या नहीं,”.. सुदर्शना ने घर में घुसते ही पूछा।

“आज कॉलेज नहीं गया मम्मी,”…

“कोई बात नहीं, नाश्ता तो कर लिया ना, लंच किया या नहीं,”.. सुदर्शना के स्वर में फिक्र है।

“नहीं मम्मी, आप हाथ मुँह हो लो, साथ ही खाएंगे,”.. वह दो दिनों से कुम्हला गये मम्मी के मुँख को देखता रहा।

“ठीक है बेटा, मैं अभी आई, खाना तैयार करती हूँ साथ ही खाएँगे,”..कहती हुई सुदर्शना गुसलखाने की ओर बढ़ गई।

अक्षय ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया। सब व्यवस्थित कर वह मम्मी का इंतजार करने लगा। वह लालायित है कि आज मम्मी के चेहरे पर उसे मुस्कान लानी है।

“अरे, तुमने खाना बनाया क्या ? टेवल पर खाना लगा देख सुदर्शना आश्चर्य से बोली।

“कॉलेज नहीं गया था ना, सोचा आज आपकी पसंद का खाना बनाता हूँ,”…अक्षय मासूमियत से बोला।

सुदर्शना उसे देखती रही, वह प्लेटों में खाना परोसने लगा है, जैसे ही उसने कौर उठाया, दिल भर आया, आँसू बह निकले। दो दिन से इकट्ठा हुआ दर्द का सैलाव बह निकला, अपनी परवरिश को दे रही प्रताड़ना से वह आज खुद ही जुझने लगी।

” मम्मी, मेरी गलती को माफ कर दो, आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा, मैं बहक गया था, प्लीज मम्मी,”…अक्षय मम्मी को सम्भालते हुये रूंधे गले से बोला।

बहुत देर तक दोनों रोते रहे, जब सारा दर्द बह गया, शांत हुये, तब दोनों ने खाना खाया। वह मां को बड़े प्यार से निहारता रहा, उनकी एक-एक भाव भंगिमा को गौर से देखता रहा, वह मां को पूरी तरह से समझना और पढ़ना चाहता है, पर वह इतना तो समझ ही चुका है कि मां उससे सब कुछ नहीं कह पाती, छुपा जाती है।

अब अक्षय मम्मी की डायरी को पढ़कर उनकी मनस्थिति का अंदाजा लगा लेता है, और कोशिश करता है कि वह उसके साथ सदा खुश रहे, एक तरह से वह बुआ के हस्तक्षेप को सही मानने लगा है, वरना वह मम्मी को इतने करीब से समझ ही नहीं पाता, वह समझ चुका है कि अच्छे से मम्मी को समझना है तो इस डायरी को अब नजरों के दायरे में रखना होगा।

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