लघुकथा... चुक हो गई

 

चुक हो गई

पति की मौत के एक माह बाद मैडम वर्मा ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है, दु:ख में नौकरी एक ऐसा सहारा है जहाँ किसी पर बोझ न बनना अपने साथ-साथ परिवार को भी बेफिक्र करता है।

सभी सहयोगियों की संवेदना मैडम वर्मा के साथ है, धीरे-धीरे वह भी काम में मन लगाने का प्रयास कर रही है, हर दर्द की दवा समय ही है, जिसे गुजर जाने देना है।

“आपने बुलाया सर,”…एक दिन प्रिंसिपल ने मैडम वर्मा ने बुलवाया।

“कैसी है आप, बच्चें कैसे हैं,”… प्रिंसिपल ने पूछा।

“ठीक हूँ सर, बच्चें भी ठीक है,”…वर्मा मैडम सहज हो बोली।

“ऐसा है वर्मा मैडम, आपके साथ जो हुआ, हमें बेहद दुख है, किंतु समय और शरीर की अपनी मांग होती है, कभी जरूरत महसूस हो तो हमें याद करें, समझ रही है ना, मैं क्या कह रहा हूँ,”… प्रिंसिपल ने एक झटके में कह दिया।

वर्मा मैडम भौचक रह गई, सारा शरीर झनझना उठा, यह दुख व्यक्त करने का तरीका है या मजबूरी का फायदा उठाने की कुचाल।

वर्मा मैडम को लगा प्रिंसिपल ने अपनी जिंदा पत्नी का दाह संस्कार कर दिया हो, ईश्वर कहाँ चुक गए, वहा रे मर्द, अजीब होती हैं इनकी सहानुभूति और फितरत।

©A