कहानी... आप खुश तो बहुत होगी

आप खुश तो बहुत होगी

बटालियन में काम करते कुछ ही वक्त हुआ था कि यहाँ के अनुशासन प्रिय माहौल में नए डीआईजी का आगमन हुआ, उन्हीं के सान्निध्य मैं काम करना है, हमेशा ऐसा होता है कि जब भी कोई नया अधिकारी आता है सबका दिल धक-धक करने लगता है कि पता नहीं किसकी ड्यूटी उनके घर पर लग जाए और वहाँ के का सारे काम करने पड़ जाये।

भरे पूरे व्यक्तित्व के पाल साहब शिघ्र ही अपने कर्मचारियों के बीच अपने मृदुल व्यवहार से मसहूर हो गये, उनके आगमन से आफिस का प्रत्येक कर्मचारी प्रभाव में है।

कुछ समय बाद उनका परिवार भी आ गया, दो बेटे और दो बेटियाँ, पत्नी इतनी खूबसूरत कि लगे दूध से नहा कर आई है, संगमरमर की देह पर काली आँखें किसी कलाकार की सार्थक सृजन की जीवित कृति लगती है, कितना सुंदर यह चेहरा, सबसे दुख की बात यही थी कि उनके दोनों पैर व एक हाथ बिल्कुल काम नहीं करते हैं, एक हाथ थोड़ा सा काम कर पाता है तथा बोलना भी लगभग बंद ही है, उन पर लकवा का ऐसा हमला हुआ कि उनके परिवार की एक शाखा को ही उखाड़ गया। पहली नजर में जितना अच्छा लग रहा था उन्हें देखकर, उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिलते ही उतना ही बुरा लगने लगा, इतना खूबसूरत चेहरा व्हीलचेयर पर आ गया है।

धीरे-धीरे पाल साहब के बारे में जानकारी मिलना शुरू हो गई, वह अपनी पत्नी की सुंदरता पर नाच किया करते थे और उनके इस खूबसूरत पत्नी रूपी खजाने पर कई सहयोगी ईर्ष्या भी करते हैं।

जितने दृढ़ पाल साहब है उतना ही उनका अटूट प्यार पत्नी के साथ है, चारों बच्चे जवान हैं, लगभग पांच वर्षो से पत्नी के सेवा कर रहे हैं, दिन में अवश्य ऑफिस की महिला कर्मचारी सहयोग देती, किंतु रात में पाल साहब ही उनका कार्य देखते हैं।

कुछ समय बाद ही पाल साहब ने स्टाफ के लोगों के परामर्श के साथ ही बटालियन की महिला कर्मचारी कृतिका को मैडम की देखभाल के लिए दिन की ड्यूटी के लिए घर पर ही लगा दिया गया।

पाल साहब पत्नी को परी कह कर पुकारते हैं, लकवे की वजह से जवान भी साथ नहीं देती है,लेकिन उनकी आँखें उनकी आवाज देते ही हरकत में आ जाती है, और सुन रही है, खुश है, दुखी हैं सब व्यक्त कर देती हैं।

धीरे-धीरे कृतिका का जुड़ाव परी मैडम के साथ होने लगा और वह उन्हें एक छोटे शिशु की तरह देखभाल करने लगी, इन दो वर्षों में परी भी कृतिका के सानिध्य से प्रसन्न रहती, इन्हीं दो वर्षों में एक बेटा और एक बेटी का ब्याह भी हो गया, कृतिका को पाल साहब के बच्चे भी, मां की देखभाल करने वाली न समझ कर, एक सहयोगी ही समझते हैं, कृतिका से प्यार नहीं था तो वह बुरी भी नहीं लगती।

कृतिका की कद काठी कसी हुई है, नैन नक्श भी सामान्य, कुल मिलाकर खाकी ड्रेस में उसका व्यक्तित्व निखार आता, मन की भी उतनी ही कोमल, परी की सेवा ऐसे करती मानो एक छोटा बच्चा हो जिसे कृतिका को ही संभालना है।

धीरे-धीरे यह हुआ कि कृतिका को पाल साहब के टूर पर जाने से रात भी परी के साथ गुजारना पड़ती, दोनों की घनिष्ठता दिन पर दिन बढ़ती गई।

कृतिका अब दोपहर में भी ऑफिस कम ही जा पाती है, वह यह तो जानती है कि उसका ऑफिस वर्क परी मेडम की देखभाल ही है, फिर भी सहयोगी कर्मचारियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, फिर क्या था कानाफूसी शुरू हुई और बातें बनने लगी।

कृतिका को भी थोड़ा सचेत होना पड़ा, फिर भी वह कुछ कर नहीं पा रही है, क्या करती, पाल साहब उसके बॉस है, अब तो घर में रहने से वह बहुत सा काम पाल साहब का भी करने लगी है, दोनों बच्चों की जिम्मेदारी भी धीरे-धीरे कृतिका के कंधों पर अपने आप आ गई।

कृतिका को लगाव है तो मात्र परी मेडम से, जो उसे अपने अनकहे शब्दों से, तो कभी धीरे-धीरे कागज पर आड़े तिरछे लिखे शब्दों से जज़्बात व्यक्त करती है,जब भी शाम को कृतिका के जाने का वक्त होता, परी मेडम उससे न जाने की याचना अपनी नजरों से करती।

कृतिका भी व्यथित हो जाती, सोचती जाने किस जन्म का बंधन है, परी मेडम के साथ कि उसका भी दिल नहीं करता उसे यूँ सुबह तक के लिए छोड़कर जाने का, फिर भी मन मार कर वह चली जाया करती।

सुबह आने पर इतना दुलार करती कि आँखों से आँसू बहने लगते, कृतिका को वह नन्हीं गुड़िया लगती, जिसे वह प्यार ही प्यार करना चाहती है, नाश्ता, खाना, नहाना, पूरा दिन उन्हीं के कामों में बितता, कृतिका, परी मेडम को अपनी गोद में लिटा लेती, घीरे-घीरे बालों को सहलाती, प्यार करती, तो परी मेडम के साथ कृतिका भी भावुक हो जाती, कितना कुछ इन हाथों के स्पर्श से वह कहना चाहती हैं, किंतु प्रकृति के अन्याय के आगे विवश हो गई है, दोनों ही प्यार के सागर में इतना मस्त रहती कि उन्हें और किसी की याद ही नहीं रहती है।

पाल साहब इन तीन वर्षों में कृतिका की देखभाल से अश्वस्त हो परी की तरफ से निश्चिंत हुए हैं, कभी-कभी उन्हें भी अपने व परी के साथ बिताए जीवन के उन सुनहरे दिनों की याद ताजा हो जाती, जब परी और बच्चों के साथ वह जीवन का भरपूर लुत्फ उठा रहे थे, कि एक दिन बुखार में आए लकवे के अटैक ने उनकी जिंदगी का रुख ऐसा मोड़ा कि वे उन्हें संभालने, सहेजने में ही व्यस्त हो गए, नौकरों-चाकरों, सहयोगियों के सहारे कब तक और किस के विश्वास पर वह परी को छोड़ सकते हैं, बच्चों को भी धीरे-धीरे मां की यह अवस्था बाधक लगने लगी, इसलिए भी पाल साहब को परी की बहुत फिक्र हुआ करती है, किंतु कृतिका ने तो मानो उन्हें इस चिंता से मुक्त कर दिया है।

परिपक्व उम्र की कृतिका जब परी से बेटा, बेटा करके बात करती तो पाल साहब का मन भी कृतिका के प्रति श्रद्धा से भर जाता। जिससे जन्म का, खून का रिश्ता होते हुए भी, बच्चों को बोझ लगने लगी मां को जब भी अकेला देखते तो मन भारी हो जाता था, बहू, सास का कोई भी काम करने को तैयार नहीं है और अब तो साथ रहने को तैयार नहीं, बेटा,बहु अलग रहने चले गये।

उस दिन परी बहुत रोई, किंतु कृतिका ने बहुत अच्छे से संभाल लिया, तभी परी ने कृतिका से वचन ले लिया कि वह उन्हें छोड़कर नहीं जाएगी।

कृतिका ने परी के साथ-साथ घर की तमाम जिम्मेदारी उठा रखी है, छोटी बेटी का ब्याह करा दिया है, बेटे का दाखिला अच्छे कालेज में करवा दिया गया, अब कृतिका, परी के लिए समर्पित हो गई ।

पिछले कुछ समय से वह परी के साथ ही रह रही है। कृतिका के माता-पिता ने समाज की बहुत दुहाई दी, कि अपनी जिंदगी से ऐसा खिलवाड़ न करें, समाज में हमारी नाक कट जाएगी, तुझे भी शादी में दिक्कतें आएगी, किन्तु कृतिका को परी के निशब्द प्यार ने ऐसा बांधा कि वह सब से नाता तोड़ बैठी है।

एक दिन बड़ी बेटी रेखा का मायके आना हुआ, और कृतिका का घर पर रुकना नगवारा गुजरा, उसने अपने पापा को समझाया, मां को भी समझाती रही, कि उनकी ससुराल में पापा और कृतिका को लेकर क्या-क्या कहा जा रहा है।

कृतिका तो कट कर रह गई, उसे लगा कि अगर यहाँ से जाने को कहा जाएगा तो क्या वह परी मेडम को छोड़ कर रह सकेगी, फिर सोचती, वह है कौन, एक अधीनस्थ कर्मचारी, इसी उधेड़बुन में कृतिका तीन दिन तबीयत खराब होने का बहाना करके अपने सरकारी आवास पर ही रुकी रही, बेचैनी तो बहुत हो रही है कि परी मैडम कि सही तरीके से देखभाल हो रही है या नहीं, पर क्या कर सकती है, यह इतना बड़ा झटका है कि वह यथार्थ में आ गिरी है।

बड़ी बेटी रेखा को जब मां का सारा काम करना पड़ा, तो वह घबरा कर वापस ससुराल चली गई।

परी ने कृतिका को बुलवाया, और एक कागज पकड़ा दिया, जिस पर लिखा है कि ..”पाल साहब से शादी करो,” कृतिका सकते में आ गई। पाल साहब को भी बुलवाया, उन्हें वह पर्ची थमाकर, कृतिका तो पानी पानी हो गई, किंतु परी मेडम ने पाल साहब के हाथों में कृतिका का हाथ दे दिया।

पाल साहब ने भी बहुत समझाने की कोशिश की, किंतु परी मेडम नहीं मानी, तब पाल साहब ने परी को आश्वासन दिया कि इस विषय पर जरूर सोचेंगे लेकिन अभी नहीं, हमें बहुत सी बातों को विचार करना होगा और कृतिका की जिंदगी का भी सवाल है।

पाल साहब ने कृतिका को भी काफी समझाया कि यह भावुकता में लिया गया कदम होगा, और यह कदम मूर्खतापूर्ण भी होगा, क्योंकि तुम्हारे सामने अभी जिंदगी का लंबा सफर बाकी है, तुम्हें कोई भी निर्णय भावुकता में नहीं लेना है, इसे अगर तुम परी की अनावश्यक जिद समझो तो ज्यादा ठीक होगा।

बहुत सा समय इसी उलझन में गुजर गया, कृतिका भी मंथन करती रहेगी और वह परी मैडम से अलग होने का सोच कर ही कांप जाती क्योंकि उनकी सेवा में उससे सिर्फ देना ही था, उनसे कुछ भी न तो पाना है और न ही कोई इच्छा बची है।

परी मैडम भी अपनी ही जिद पर अड़ी है, रोज वही प्रसंग छोड़ देती और कृतिका से रूठ जाती, पूरा दिन लग जाता था कृतिका को नहीं बनाने में, फिर वह पाल साहब के साथ भी वही करती और यह स्थिति काफी दिनों तक चली, पता नहीं परी मैडम के अंदर क्या मथ रहा है कि वह अंदर से घुटन महसूस करने लगी है, थोड़ी-थोड़ी उनकी तबीयत भी खराब रहने लगी है, अब वह भी जिद के साथ रोने भी लगती, कृतिका को बहुत दया आती, वह अपने को असहाय महसूस कर ऐसा कुछ कर गुजरने की सोचने लगती, जिसमें वह खुश हो जाये।

एक दिन जब परी मैडम बहुत रोने लगी तब पाल साहब को बुलवाया गया, वह बहुत देर तक परी मैडम को समझाते रहे, बहलाते रहे, कृतिका ही खड़ी सुनती रही, बस समझ रही है कि परी मैडम के अंदर कोई ऐसी चिंता है जो वह परेशान हो रही है और छटपटा भी रही हैं।

“सर, मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ, अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं कुछ कहूँ,”…अब कृतिका से नहीं रहा जा रहा था उसने पाल साहब से कुछ कहने की आज्ञा मांगी।

“हां कहो,’.. पाल साहब ने सहज ही बोल दिया।

“परी मैडम की बात मान लीजिए सर, मुझे समाज में पत्नी का दर्जा दे दे, मैं आपसे परी मैडम मांगती हूँ, इसके अलावा मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए,”.. एक ही सांस में कृतिका बोल गई।

“यह क्या कह रही हो, सोच समझकर बोलो,”… पाल साहब कृतिका को देखते ही रह गए।

पाल साहब ने भी बहुत सोच विचारा और एक दिन परी के लगातार आग्रह को स्वीकृति दे दी, दोनों की कोर्ट मैरिज हुई, जिसे परी ने प्रसन्नता से स्वीकार किया, उस दिन परी ने कृतिका को बहुत प्यार किया।

बेटा, बेटी बागी हो गए, कृतिका पर पापा को फंसाने का आरोप लगा, आरोपो के दौर चलते रहे, और ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चलती रही, कृतिका ने कभी कोई मांग नहीं की, न ही कभी अधिकार जताने की चेष्टा की, इस बीच बेटे के घर बेटी का जन्म हुआ, कृतिका जबरदस्ती बहू को अपने साथ ले आई, किंतु बहू को खुश नहीं होना था, नहीं हुई।

छ: वर्ष गुजर गये, कृतिका कि जिम्मेदारियाँ ज्यादा बढ़ गई, फिर भी उसने कभी परी मेडम को कभी भी अनदेखा नहीं किया, उनका खाना पीना, नहाना, घुमाना सभी कार्य यथावत चलते रहे।

पाल साहब भी कृतिका के निस्वार्थ प्यार के आगे नतमस्तक हो गये हैं, जो थोड़ा बहुत डर था वह भी जाता रहा, कुछ समय से परी मैडम की तबीयत भी नासाज रहने लगी है।

एक दिन परी मेडम ने पाल साहब को समझाकर बताया कि उसे मंगलसूत्र बनवा कर दें, पाल साहब खरीद लाए। शाम को पाल साहब जब ऑफिस से आए तो उन्हें वह मंगलसूत्र देकर कृतिका को पहनाने के लिए कहा, कृतिका ने बहुत समझाया की परी मैडम यह सर आपके लिए लाए हैं, लेकिन वह नहीं मानी और उन्होंने इसारे से ही बताया कि यह उन्होंने कृतिका के लिए ही मंगवाया है।

कृतिका तो भावविभोर हो गई, उसे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि परी मैडम यह सब करके यह विश्वास अपने आप को दिलाना चाह रही हैं कि कृतिका अब कभी पाल साहब को छोड़कर नहीं जाएगी, शायद उनका यह सब करने के पीछे विश्वास को कायम रखना ही रहा होगा, कृतिका पता नहीं क्या-क्या सोचती रही, उसका मन भी द्रवित हो गया, कोई इंसान इतना अच्छा कैसे हो सकता है, इतना प्यार करने वाला, अपना सुहाग भी बांट लें, कृतिका को आज बहुत रोना आ रहा है, वह कहीं न कहीं अपने को सौभाग्यशाली भी मान रही है कि वह अपने जीवन में इतने प्यार की हकदार बनी।

अब परी मैडम ज्यादा खुश रहती है, खुशी-खुशी अपने सारे काम करने देती, गुस्सा तो करना उन्होंने जैसे छोड़ ही दिया है, अपने आप में तृप्त सी लगती, उनके चेहरे पर नूर छलकने लगा है, वह दिन पर दिन खूबसूरत होती जा रही है, कृतिका छेड़ती..”आप तो और सुंदर होते जा रहे हो,”.. उनके गालों पर लाज की लाली बिखर जाती । यह देखकर कृतिका बेहद खुश होती, क्योंकि वह पूरे दिन में एक बार उन्हें मुस्कुराते हुए देखने के लिए सारे जतन करती रहती है, इस छवि के लिए तो वह उन पर न्योछावर हो, हो जाती।

काफी अच्छा समय गुजरता रहा, फिर एक दिन सुबह परी मेडम में कोई हलचल नहीं हुई, कृतिका चित्तकार कर बेहोश हो गई, उसने तो यह सब सोचा ही नहीं था फिर क्यों हुआ यह, शायद उसकी सेवा में कमी है, कृतिका को संभालना मुश्किल हो रहा है।

प्रकृति के नियम अनुसार सारे कार्य होते चले गये, पाल साहब परी के बाद ही कृतिका को शायद समझ सके, अब तो मानो दोनों में कोई सूत्र ही नहीं रह गया है, दिन भर कि परी मेडम की खबर देना, कृतिका का काम था, अब बात करने को जैसे कुछ बचा ही नहीं, कृतिका भी अस्वस्थ सी रहने लगी है।

घर में सभी बच्चे मौजूद है, बड़ी बेटी रेखा ने परी मेडम की अलमारी खोली, मां के कपड़ों को सहलाते हुए उन्हें तह करके रखने लगी, तो एक साड़ी की तह से एक कागज गिरा, जिज्ञासा बस उठाकर देखा और पड़ने लगी, मां की ही लिखावट है वह तुरंत पहचान गई, लिखा है… कृतिका मेरी मां है, इसे कभी कोई दुख मत होने देना,…परी।”

रेखा बिलख उठी, पुरा घर जमा हो गया, सभी पुछने लगे.. क्या हुआ ? कृतिका को न चाहते हुए भी एक अनजाना सा डर व्याप्त हो गया। पाल साहब ने जब रेखा कि कंधे पर हाथ रखा तो उसने वह कागज अपने पापा की ओर बढ़ा दिया, रेखा ने कृतिका को अपने अंक में भर कर, उससे बार-बार माफी मांगने लगी।

कृतिका उसे संभालते ही रह गई, उसे शांत रहने के लिए कहती रही, लेकिन रेखा लगातार उस से माफी मांगते जा रही है, पत्र को पढ़ते ही सारे बच्चे कृतिका से लिपट गये और अपने किये की माफी मांगने लगे।

पश्चाताप और रुदन का ऐसा संगम हुआ कि, उस समय फिजा भी अपने आँसू बहा रही है, कृतिका सभी को चुप कराती रही और शांत रहने को कहती रही और आखिर में उसे कहना ही पड़ा कि… “हां, हां उसने सब को माफ कर दिया।”

कृतिका को हमेशा लगता था कि उसकी वजह से बच्चे अपने पापा से भी नफरत करने लगे हैं, उनसे दूर होते चले गये हैं, इसके बाद भी परी मेडम ने उसकी सेवाओं का ऐसा मीठा फल दे दिया कि वह अपने को परी मैडम की सौतन कहलाने में भी गर्व महसूस कर रही है।

कृतिका को मुस्कुराता देख सभी का मन हल्का हो गया।

कृतिका ने आसमान की तरफ देखा और शरारती अंदाज में कहा.. “परी मैडम, यह सब देख कर खुश तो बहुत हुई होंगी आप,”…

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