बदली हवा
बदली हवा देश की कैसी
बदला देश का वेश
नहीं बची आँखों में लज्जा
शर्म हया का किंचित लेश…..
मन के मन में मानव के
नहीं अब किंचित प्यार
बचे स्वार्थ के रिश्ते केवल
अपनों पर अपने हैं भार
मन में उग आए अब काँटे
घर में ही हो गया विदेश
*
बदली हवा देश की कैसी
बदला देश देश का वेश……
घर यह घर अब नहीं रहा है
घर वाले अनजान हुए
साए ही हो गए अजनबी
अपने ही मेहमान हुए
जीना कठिन हुआ है अब तो
नहीं बचा है कुछ भी शेष
*
बदली हवा देश की कैसी
बदला देश देश का वेश……
नहीं मीत अब मीत रह गया
वह दिन कहाँ विलीन हुए
अर्थ प्रदान हो गया अब तो
हम सब मन से दिन हुए
भौतिकता की होड़ लगी है
बदल गया सारा परिवेश
*
बदली हवा देश की कैसी
बदला देश देश का वेश……..।