काफिया...आता
रदीफ़... रहा
मिसरा...सब्र हो मदहोश जाता रहा।
बहर....21222 122 212
अब तो चाहत नहीं रिश्ता बने
कैसे जन्मों का कह दे नाता रहा ।
होश में तो ज़ब्त से पाला पड़ा
सब्र हो मदहोश जाता रहा ।
उसको है हैवानियत सिखाता कौन
दिल से इंसानियत निभाता रहा ।
अब मजा बंधन में भी कुछ है नहीं
क्यों भरोसा खुद पर ही जाता रहा ।
मुझको बर्बादी तरह से तीर सा
ओर बुलंदि पास बुलाता रहा ।