क़ाफ़िया -- जला ('आ' स्वर)
रदीफ़ -- न होता।
मिसरा .....तो शह्र दिल का जला न होता
वज़्न -- 121 22 121 22
तू साथ मेरे चला न होता ,
तो जिंदगी का भला न होता ।
तुम्हीं ने रुसवा किया है मुझको ,
ऐ काश तुमने छला न होता ।
तू साथ है फिर भी काश संग में ,
ये दर्द का काफ़ला न होता ।
मेरी दुआ रंग ला रही है,
वो दो कदम भी चला न होता ।
उसे बियाबां क्या रास आता,
जो घर ही उसका जला न होता।