ग़ज़ल

क़ाफ़िया -- जला  ('आ' स्वर)
 रदीफ़ -- न होता।
मिसरा .....तो शह्र  दिल का जला न होता
 वज़्न -- 121 22  121 22


 


तू साथ मेरे चला न होता ,
तो जिंदगी का भला न होता ।


तुम्हीं ने रुसवा किया है मुझको ,
ऐ काश तुमने  छला न  होता ।


तू साथ है फिर भी काश संग में ,
ये  दर्द का  काफ़ला न  होता ।


मेरी  दुआ  रंग ला  रही है,
वो दो कदम भी चला न होता ।


उसे बियाबां क्या रास आता,
जो घर ही उसका जला न होता।