कविता

कविता


                 क्या कर लूँ


 


इस छंटा को कहाँ 
रखू कहाँ बटोर लूँ
जेहन में सवार कर
यादों में पीरो  लूँ
पर मैं दूर  खड़ी 
इन्हें कैसे छू लूँ
सुहानी सी मदहोशी
नैनों बीच कैद कर लूँ
आँखों की तृप्ती से
मन ही मन झूम लूँ
देखूँ और बस देखूँ 
पर जरा सा चूम लूँ 
जहाँ तहाँ से कैसे
कैसे  बाहों में भर लूँ
तुम मुझ में मैं तुझ में 
शून्य को ही सोख लूँ.....


© अंजना छलोत्रे