कविता

कविता


घर ने दी आवाज में कैसे न लोटू
तेरी बेचैनी को मैं क्या न समझूँ
मुझे पता कितनी अंदर तक खाली है तू 
कितनी भोली कितनी नादा
 फिर भी तू  हुई अकेली
क्यों इतनी दुखी हो रही 
तूझे मिल गई नहीं सहेली 
अब क्यों इतनी तड़प बची 
तेरे अंदर तो कोई कड़ी जुड़ी 
देख लो यह चैन भी बेचैन है 
तुझे देखने खिड़की से झाँके 
नैन इंतजार की रुत में बैठे
चाहे जितना शोर मचा हो 
दुनिया के बाजारों में 
लेकिन मेरे अंदर भी है 
एक बवंडर सालों से
 कैसे निपटू मैं यह सोच रही 
अन्दर बाहर तलाश रही
जहाँ तू खड़ी और मैं खड़ी 
दोनों अपने-अपने युद्ध क्षेत्र की 
व्यू रचना ही रच रही...


 


°© अंजना छलोत्रे