ग़ज़ल


काफिया....आ
 रदीफ़ .....नहीं होता
मिसरा...हमारा दर्द से गहरा रिश्ता नहीं होता
 धुन .. ...मुझे तुम याद करना और मुझको याद आना तुम



अगर दर्पण में कल वह चांद सा चेहरा नहीं होता 
कसम से इस कदर  हमने उसे चाहा नहीं होता ।


हमारा तुमसे भी  कोई कभी रिश्ता  नहीं होता 
तो दिल ने इस तरह तुमको कभी खोजा नहीं होता।


मुझे मंजिल तलक तो जंगलों से ही गुजरना है,
तुम्हारे घर से गुजरे वह मेरा रास्ता नहीं होता ।


हमारे घर की रौनक ही अगर बनते तो अच्छा था
 जहाँ में इस तरह तो  प्यारा का सौदा नहीं होता ।


गुजरा आपके बिन एक पल होता  नहीं हमसे,
तुम्हें जाते हुए ऐ काश कल देखा नहीं होता।


 


©अंजना छलोत्रे 'सवि'