ग़ज़ल

कफिया .... आन
रदीफ़.........है यारों
मिसरा.... शरीफों की यहाँ आफत में हर पल जान है यारो
बहर......1222  1222  1222  1222
 धुन..... चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों


बुझा दो वो दिया जलता जो मेरे नाम है यारो
मैं लौट आया तुम्हारे प्यार का ईनाम है यारो


बहुत दिन हो गए बिरहा के अब रहना नहीं तन्हा
मिलन की आ गई घड़ियाँ सुहानी शाम है यारो


 करो अब बात मुझसे यूँ ना तड़पाओ जी चुप रहकर
मेरी फितरत पे ख़ामोशी  बड़ा इलज़ाम है यारों ।


मेहरबां जिस पे होते बद्दुआ देते नहीं उसको
दुआएं होश की क्यों सामने इक जाम है यारो


बहुत उलझा है जीवन अब संभल जाओ मगर तुम भी
हटा लो मुझसे नजरें दिल युंही बदनाम है यारो


मुहब्बत की सज़ा मंज़ूर है  जो भी मिले मुझको,
ग़ुलामी यार की सुबह कफ़स में शाम है यारो।


 


© अंजना छलोत्रे 'सवि'