काफिया...आ
रदीफ़... जिंदगी
मिसरा...नसीबों में है जो लिखा जिंदगी
धुन .......मेरे दोस्त किस्सा यह क्या हो गया
दिखाएगी अब रंग क्या जिंदगी
कोई पल तो राहत दिला जिंदगी
कोई मुझसे क्यों है ख़फा ये बता
मानने के गुर भी बता जिंदगी
जड़ें मजहबों की हैं गहरी बहुत
समझने को है क्या बचा जिंदगी
ये बेमौसमों की बहारें हुई
कहाँ जाएँ तू ही बता जिंदगी
ये साजिश है गर तो यही देख ले
सिपाही के घर चोर ला जिंदगी
अचानक ही कर वार जाती है क्यों
कभी मुझ से नज़रें मिला जिंदगी
बहुत उसको चाहा तो था टूट कर
मिली क्यों बिरह की सज़ा जिंदगी
कुछ तो बता कुछ सुना भी तो दे
न अब बोझ मेरा बढ़ा जिंदगी
यूँ तन्हाइयों का ये आलम न पूछ
बना दर्द ही आसरा जिंदगी
© अंजना छलोत्रे