लेख

 1900 के आंदोलन में भाग लेती नेत्रियाँ


उषा मेहता सावित्रीबाई फुले


 गुजरात के सूरत के पास सारस गांव में पैदा हुई सावित्रीबाई फुले ने 5 साल की उम्र में गांधी जी को अपने गांव के पास एक शिविर में आना और कताई करते देखा था।  1928 में 8 साल की  उम्र में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया और ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह में 'साइमन गो बेक'  पहला विरोधी शब्द  निकला।  अन्य बच्चों के साथ मिलकर शराब की दुकानों के सामने बैठकर ब्रिटिश राज के विरोध में धरना  में भाग लिया।  इस विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसकर्मियों ने उनमें से एक ने जिस  बच्चेके हाथ में ध्वज था  को धक्का देकर गिरा दिया। 
 इस घटना का गुस्साये बच्चों ने अपने माता-पिता को  साथ लिया  और कुछ दिन बाद भारतीय ध्वज के रंग सफेद और हरे रंग से बच्चों को रंग लगाकर  उन्हें सड़कों पर भेज दिया।  ध्वज के रंगों में कपड़े पहने हुए बच्चों ने फिर से चढ़ाई करते हुए चिल्लाया पुलिसकर्मियों आप अपनी छड़ी और अपने बंधुओं को दंडित  कर सकते हैं लेकिन आप हमारे झंडे को नीचा नहीं कर सकते।
उषा के पिता ब्रिटिश राजा के अधीन एक जज थे इसलिए उन्होंने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया।  हालांकि जब उनके पिता 1930 में सेवानिवृत्त हुए । तब उन्होंने उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। 
1932 में जब वह 12 वर्ष की थी उनका परिवार मुंबई में स्थानांतरित हो गया । विलासिता से दूर रहने के लिए  वह  गांधीवादी विचार और दर्शन की प्रमुख प्रत्याशी के रूप में उभरी और फिर चंदारामजी हाई स्कूल करते हुए मैट्रिक परीक्षा 1935 में पास की ।  1942 में भारत छोडो आंदोलन में शामिल होने के बाद से  उन्होंने पूर्णकालिक स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लियाभाग लिया। भारत के इतिहास में आपका योगदान सराहनीय हैं।



 दुर्गाबाई देशमुख


 15 जुलाई 1909 काकीनाडा के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी। 12 साल की उम्र में वह गांधीजी से बेहद प्रभावित हुई और उन्होंने भारतीय स्वतंत्र आंदोलन में हिस्सा लिया। दुर्गाबाई देशमुख ने अंग्रेजी शिक्षण विद्यालय के खिलाफ विरोध किया और हिंदी राष्ट्रभाषा प्रचार आंदोलन में भाग लिया।  विदेशी वस्तुओं के खिलाफ अभियान में भी अग्रणी रही और  महिलाओं के बीच शिक्षा बढ़ाने के लिए दुर्गाबाई देशमुख ने 1920 में बालिका हिंदी पाठशाला की स्थापना की । उन्होंने 1930 में नमक सत्याग्रह का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया । महिलाओं के लिए महिला सभा की स्थापना की । 
ब्लाइंड रिलिफ एसोसिएशन की स्थापना अध्यक्ष बनी और उनके लिए स्कूल छात्रावास और एक हल्की इंजिनियरिंग कार्यशाला की स्थापना की।  नई दिल्ली में सामाजिक विकास के लिए परिषद की स्थापना की। अभूतपूर्व कार्यों के चलते अपने विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया।
दुर्गाबाई देशमुख ने सामाजिक कल्याण और साक्षरता में  अजीवन योगदान के लिए नेहरू साक्षरता पुरस्कार और यूनेस्को पुरस्कार प्राप्त किए हैं । उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया । दुर्गाबाई देशमुख ने भारत में सामाजिक कार्यकर्ता की'  मां 'कहा जाता है 9 मई 1981 में उनकी मृत्यु हो गई। स्वतंत्र भारत के उदय में आपका योगदान विसमरणिय हैं । 


अरुणा आसफ अली 


का जन्म 16 जुलाई 1908 को कलाका (हरियाणा) में एक रूढ़ीवादी हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था।  वह लाहौर में सेकंड हार्ट कन्वेंट में शिक्षा ली ।  स्कूल से स्नातक होने के बाद कलकात्ता के गोखले मेमोरियल स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। 
 भारत के आंदोलन के दौरान 1942  हजारों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनी । भारत छोड़ो आंदोलन के प्रारंभ में गोवालिया टैंक मैदान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया और हजारों युवाओं के लिए एक उत्साह का केंद्र बन गई। अरुणा आसफ अली ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक मुख्य भूमिका निभाई ।  दिल्ली के पहले महापौर के रूप में निर्वाचित हुई। 1975 में शांति के लिए लेनिन पुरस्कार और 1991 के लिए अंतरराष्ट्रीय समझ के लिए और 1998 में भारत रत्न के साथ जवाहरलाल नेहरू ने पुरस्कार से सम्मानित किया।


 सुचेता कृपलानी 


आपका जन्म 25 जून 1908 को  हरियाणा राज्य के अंबाला शहर में हुआ । उनकी शिक्षा दिल्ली और लाहौर में हुई थी।  गांधी के बेहद करीब रही , भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचिता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया ।
"बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढायेगा", कहकर वह भूमिगत हो गई।  उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया । इसके लिए अंडर ग्राउंड वॉलिंटियर्स टीम बनाई । लड़कियों को  लाठी चलाना , प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी।
 राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रही । दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने का काम लिया । 
15 अगस्त 1947 को संविधान सभा में वंदे मातरम् गाया ।
मुख्यमंत्री बनने के पहले वे लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई । 1948 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी
 1963  में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री थी ।  सुचेता कृपलानी उन महिलाओं में शामिल हैं जो आजादी की जंग में बापू के साथ थी। 1963   उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया । 
 1 दिसंबर 1974 को निधन हो गया उनके शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि "सुचिता जी, ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थी जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है ।"
श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।


 विजयलक्ष्मी पंडित


 आपका जन्म 18 अगस्त 1908 में इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ। यह पंडित मोतीलाल नेहरु की पुत्री तथा जवाहरलाल नेहरू की बहन थी।  विजय लक्ष्मी पंडित का बचपन का नाम "स्वरूप "था । ऐ


सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। विजयलक्ष्मी पंडित एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थी और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था । 


1919 में महात्मा गांधी "आनंद भवन" में आ कर ठहरे,  उनसे बहुत प्रभावित हुई,  इसके बाद उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। आंदोलन में भाग लेने के कारण विजयलक्ष्मी पंडित को 1932 में गिरफ्तार किया गया । 


 विजय लक्ष्मी पंडित आंदोलन में आगे रहते जनजाति आंदोलन में जुट गई ।  1937 के चुनाव में उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य चुनी गई। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की प्रथम महिला थी । द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होने के बाद मंत्री पद छोड़ते ही विजय लक्ष्मी पंडित को फिर से बंदी बना लिया गया।


भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली महिला मंत्री थी। संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष भी वही थी। विजय लक्ष्मी पंडित स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थी , जिन्होंने मास्को , लंदन , वाशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।


जेल से बाहर आने पर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में फिर से गिरफ्तार की गई , लेकिन बीमारी के कारण 9 महीने बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया ।


14 जनवरी 1944 को उनके पति रणजीत सीताराम पंडित का निधन हो गया विजयलक्ष्मी पंडित देश-विदेश में अनेक महिला संगठनों से जुड़ी हुई थी।


 वर्ष 1945 में विजय लक्ष्मी पंडित अमेरिका गई  और अपने भाषण के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार प्रचार किया ।


1946 में  पुनः उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री बनी।  स्वतंत्रता के बाद विजय लक्ष्मी पंडित ने "संयुक्त राष्ट्र संघ" में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और संघ में महिलाओं की प्रथम महिला अध्यक्ष निर्वाचित की गई।


 विजय लक्ष्मी पंडित ने रूस, अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैंड और स्पेन में भारत के राजदूत का कर्य सम्हाला। । इंग्लैंड में हाई कमिश्नर के पद पर कार्य किया । 1952 और 1964 में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गई। वह  कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रही थी।  वर्ष 1990 में विजय लक्ष्मी पंडित का निधन हुआ। कर्मठ और जुझारू , महिलाओं की पछधर विजय लक्ष्मी पंडित के योगदान का यह सदी त्र्रृणी रहेगी।



कमला नेहरु



 आपका जन्म 1 अगस्त 18 99 को दिल्ली में एक कश्मीरी परिवार में हुआ था पिता जवाहरलाल कौल एक साधारण व्यवसाई थे। उन दिनों लड़कियों का घर से बाहर निकलने की स्वतंत्रता नहीं थी। वह देखने में बहुत सुंदर थी इसलिए मोतीलाल नेहरू ने इंग्लैंड में पढ़ रहे अपने बेटे जवाहरलाल के लिए उन्हें पसंद किया । 8 फरवरी 1916 को दोनों का विवाह हो गया। 
 मोतीलाल नेहरू के घर में पश्चिमी वातावरण से तालमेल बैठाने में काफी परेशानी हुई ,  लेकिन कमला नेहरू ने भारतीय आचार विचार को छोड़े बिना जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक कार्य में रुचि लेना और सक्रिय सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। 
 कमला नेहरु ने स्वतंत्रता संग्राम में महिला जागरण तथा स्वदेशी के प्रचार में सक्रिय भाग लिया। एक समय ऐसा भी आया जब  सब नेताओं के जेल में बंद हो जाने पर उन्होंने पूरे प्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व किया । 1931 में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके लखनऊ की जेल में डाल दिया था।


 जेल में ही कमला नेहरु को क्षय रोग ने घेर लिया था,  देश विदेशों में उनका इलाज हुआ पर रोग से छुटकारा नहीं मिल  सका और 28 फरवरी 1936 को स्विजरलैंड के चिकित्सालय में उनका देहांत हो गया।
कमला नेहरू का योगदान भी देश के लिए सराहनीय रहा है।



सरोजनी नायडू


आपका जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था आपके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षा शास्त्री थे। उन्होंने हैदराबाद के निजाम कॉलेज की स्थापना की थी। आपकी मां वरदा सुंदरी कवयित्री थी और बंगाली भाषा में कविताएँ लिखती थी।  सरोजिनी नायडू 8 भाई बहन में सबसे बड़ी थी , उनके एक भाई वीरेंद्र नाथ क्रांतिकारी थे। और एक भाई हरिंद्रनाथ कवि , कथाकार और कलाकार थे। सरोजिनी नायडू होनहार छात्रा थी और उर्दू ,तेलुगु ,इंग्लिश बांग्ला और फारसी भाषा में निपुण थी । 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी।  हैदराबाद के निजाम ने उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी 16 वर्ष की आयु में उन्होंने इंग्लैंड जाकर पढ़ाई की।


वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुई , इस आंदोलन के दौरान वह गोपाल कृष्ण गोखले ,रविंद्र नाथ टैगोर ,मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट ,सीपी रामास्वामी अय्यर , महात्मा गांधीऔर जवाहरलाल नेहरू से मिली । भारत में महिला सशक्तिकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठाई, उन्होंने राज्य स्तर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह महिलाओं को जागरूक करने का कार्य किया । वर्ष 1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई। " सविनय अवज्ञा आंदोलन " में वह महात्मा गांधी  के साथ जेल भी गई । वर्ष 1942 में "भारत छोड़ो आंदोलन"  में भी उन्होंने 21 महीने के लिए जेल जाना पड़ा । स्वतंत्रता के बाद सरोजनी नायडू भारत की पहली महिला राज्यपाल बनी। उत्तर प्रदेश का राज्यपाल घोषित होने के बाद वह लखनऊ में बस गई । उनकी मृत्यु 2 मार्च 1949 को  दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई। स्वतंत्र भारत मैं आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही हैं।


कस्तूरबा गांधी


आपका जन्म 11 अप्रैल 1 869 में कठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था आपके पिता गोकुलदास मकान जी साधारण स्थिति के व्यापारी थे कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थी आपका भी बहुत कम उम्र में महात्मा गांधी से कर दिया गया था लगभग 12 वर्ष तक दोनों अलग-अलग रहे इंग्लैंड प्रवास से लौटने के बाद बापू को अफ्रीका जाना पड़ा
 यह 12 वर्ष की दूरियां थी जब वह 1896 में भारत आए तब बा को अपने साथ ले जा पाए ।
उन्होंने अपनी तरफ से अपने जीवन को सदा ओर सरल रखा। वह बापू के धार्मिक एवं देश सेवा के महा व्रतों में सदैव उनके साथ रहती यही उनके  जीवन का उद्देश्य बन गया था ।बापू के सत्याग्रह में वह  उनकी देखभाल करती रही । जब 1932 में हरिजनों के प्रश्न को लेकर बापू ने यरवदा जेल में अमरण उपवास आरंभ किया उस समय बहुत बेचैन हो उठी थी वह लगातार आन्दोलनों में भाग लेती रही उन्हें तभी चैन मिला जब बे यरवदा जेल भेज दी गई।
महात्मा गांधी की पथगामिनी बनकर सदा देश की आजादी के लिए अग्रसर रही।


 


मैडम भीकाजी कामा


 आपका जन्म 24 सितंबर 1861को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था। आपके पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे इनके दादा  का नाम सौरभ जी पटेल था। भीकाजी के नौ भाई बहन थे । उनका विवाह 1885 में पारसी समाज सुधारक रुस्तम जी कामा से हुआ था । 


भीकाजी ने लंदन,  जर्मनी तथा अमेरिका में भाषण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था ।  22 अगस्त 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में हुई सातवीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस सम्मेलन में तिरंगा फहराने के लिए विख्यात हुए थी। उन्होंने अपनी शिक्षा अलेक्जेंड्रा नेटिव गर्ल्स संस्थान में प्राप्त की थी।  वह हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी गतिविधियों में लगी रहती थी।  


18 96 में मुंबई में प्लेग  फैलने के बाद भीकाजी ने  मरीजों की सेवा में दिन रात लगा दिया था,  बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थी । इलाज के बाद ठीक हो गई थी लेकिन उन्हें आराम और आग के इलाज के लिए की सलाह दी गई थी उन्होंने लंदन में रहने लगी। 


 यही उनकी मुलाकात प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा , हरदयाल और वीर सावरकर से हुई । लंदन में रहते हुए वह दादा भाई नरौजी की निजी सचिव बनी।  दादाभाई नौरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियन थे । जब वह हालैंड में थी उस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी रचनाएँत्र प्रकाशित करवाई थी और उन को लोगों तक पहुँचाया भी था. 


जब फ्रांस में थी तब ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी,  पर फ्रांस की सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया था । इसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जप्त कर ली और भीकाजी कामा के भारत आने पर रोक लगा दी । 
उनके सहयोगी उन्हें  भारतीय क्रांति की माता कहते थे। जबकि अंग्रेज कुख्यात महिला , खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी ,क्रांतिकारी तथा ब्रिटिश विरोधी कहते थे।


भारत सरकार ने उनके सम्मान में भारत में कई स्थानों और गलियों का नाम उनके नाम पर रखा गया है । भारतीय तटरक्षक सेना में जहाजों के नाम उनके नाम पर रखा गया है
26 जनवरी 1962 में भारतीय डाक ने उनके समर्पण और योगदान के लिए उनके नाम का डाक टिकट जारी किया था ।  देश की सेवा और सत्ता के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाली महिला की मृत्यु 1936 में मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में हुई। 
भारत के इतिहास में आपका नम स्वर्णिम अक्षर में अंकित हैं।



ऐनी बेसेंट



 आपका जन्म 1 अक्टूबर 1847 को  एमिली मॉरिस और विलियम बुड के घर लंदन में हुआ आप एक ऐसी महिला थी जिन्होंने थियोसोफिस्ट सोसाइटी के कार्यों के दौरान 1818 में भारत आई 1920 में इन्होंने केंद्रीय हिंदू कॉलेज की स्थापना में मदद की  कुछ साल बाद में ब्रिटिश साम्राज्य के कई हिस्सों में विभिन्न लॉज स्थापित करने में सफल हो गई।


 1960 में एनी बेसेंट थियोसोफिस्ट सोसायटी के अध्यक्ष बनी वे भारतीय राजनीति में शामिल हो गई ।और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गई ।वह  प्रसिद्ध ब्रिटिश समाज सुधारक, महिला अधिकारों के समर्थक, थियोसोफिस्ट लेखक तथा वक्ता होने के साथ ही आयरिश तथा भारत की आजादी की समर्थक थी।
 वह 1877 में प्रसिद्ध जन्म  प्रचारक चार्ल्स नोल्टन की एक प्रसिद्ध किताब प्रकाशित करने के लिए चुनी गई। 1880 में उनकी करीबी मित्र चार्ल्स ब्रेडलाफ नार्थ हैंम्प्टन के सांसद में सदस्य चुने गए , तब वो फैब्रियन सोसाइटी के साथ ही मार्क्सवादी सोशल डेमोक्रेटिक फेडरेशन की प्रमुख प्रवक्ता बन गई । उनका चयन लंदन बोर्ड स्कूल के हैमिल्टन टावर के लिए किया गया।


 1907 में एनी बेसेंट थियोसोफिस्ट सोसायटी की  अध्यक्ष बनी वाह भारतीय राजनीति में शामिल हो गई और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ कर भारत में स्वतंत्रता के लिए भाग लेने लगी भारतीय इतिहास में  आपका योगदान सराहनीय है।


 


डॉक्टर लक्ष्मी सहगल


आपका जन्म 1914 में एक  तमिल परिवार में हुआ था ।
अपनी मां से अपना पहला देशभक्ति पूर्ण  आचरण सीखा क्योंकि पहले से ही घर में मां देशभक्ति के कार्यों से जुड़ी हुई थी  वह कांग्रेस की सदस्य थी ।
मद्रास मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा में अपनी डिग्री प्रप्त  की और डॉक्टर के रूप में केरियर के लिए सिंगापुर गई।
 
 उस समय सिंगापुर में अंग्रेजों ने शासन किया था और जब जापानी ने देश पर आक्रमण किया तब वह उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा, उसमें  हजारों भारतीयों को कैदी के रूप में लिया गया । इस मौके पर नेताजी ने भारतीय कैदियों को आई एन ए में शामिल होने और ब्रिटिश के खिलाफ लड़ने के लिए आमंत्रित किया । बहुत से भारतीय  आई एन ए में शामिल हो गए।  लक्ष्मी सहगल उनमें से एक थी ।
 नेताजी ने लक्ष्मी सहगल के  साहस से प्रभावित होकर उन्हें रानी झांसी रेजीमेंट की अगुवाई करने के लिए कहा जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया । वह वर्मा के जंगलों में अंग्रेजो के खिलाफ एक मजबूत दीवार की तरह  खड़ी रही । 


 कानपुर में भव्य चिकित्सालय  है.  आजादी के बाद भी वे जनमानस की सेवा करती रही और अंतिम समय में अपनी देहदान कर गई।


आजादी में इन महिलाओं का जो  योगदान रहा है वह सराहनीय ही रहा है हम इन्हें पढ़कर गौरवान्वित होते हैं और धन्य हो जाते हैं कि हम उस देश में जन्मे हैं जहाँ इतनी वीरांगनाएँ आजादी के लिए संघर्षरत रही हैं सभी को नमन करते हुए मैं अपने आप को गौरवशाली महसूस कर रही हूँ।


 


 विजयलक्ष्मी पंडित


 आपका जन्म 18 अगस्त 1908 में इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ। यह पंडित मोतीलाल नेहरु की पुत्री तथा जवाहरलाल नेहरू की बहन थी।  विजय लक्ष्मी पंडित का बचपन का नाम "स्वरूप "था । ऐ


सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। विजयलक्ष्मी पंडित एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थी और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था । 


1919 में महात्मा गांधी "आनंद भवन" में आ कर ठहरे,  उनसे बहुत प्रभावित हुई,  इसके बाद उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। आंदोलन में भाग लेने के कारण विजयलक्ष्मी पंडित को 1932 में गिरफ्तार किया गया । 


 विजय लक्ष्मी पंडित आंदोलन में आगे रहते जनजाति आंदोलन में जुट गई ।  1937 के चुनाव में उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य चुनी गई। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की प्रथम महिला थी । द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होने के बाद मंत्री पद छोड़ते ही विजय लक्ष्मी पंडित को फिर से बंदी बना लिया गया।


भारत के राजनीतिक इतिहास में पहली महिला मंत्री थी। संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष भी वही थी। विजय लक्ष्मी पंडित स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थी , जिन्होंने मास्को , लंदन , वाशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।


जेल से बाहर आने पर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में फिर से गिरफ्तार की गई , लेकिन बीमारी के कारण 9 महीने बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया ।


14 जनवरी 1944 को उनके पति रणजीत सीताराम पंडित का निधन हो गया विजयलक्ष्मी पंडित देश-विदेश में अनेक महिला संगठनों से जुड़ी हुई थी।


 वर्ष 1945 में विजय लक्ष्मी पंडित अमेरिका गई  और अपने भाषण के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार प्रचार किया ।


1946 में  पुनः उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य और राज्य सरकार में मंत्री बनी।  स्वतंत्रता के बाद विजय लक्ष्मी पंडित ने "संयुक्त राष्ट्र संघ" में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया और संघ में महिलाओं की प्रथम महिला अध्यक्ष निर्वाचित की गई।


 विजय लक्ष्मी पंडित ने रूस, अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैंड और स्पेन में भारत के राजदूत का कर्य सम्हाला। । इंग्लैंड में हाई कमिश्नर के पद पर कार्य किया । 1952 और 1964 में वे लोकसभा की सदस्य चुनी गई। वह  कुछ समय तक महाराष्ट्र की राज्यपाल भी रही थी।  वर्ष 1990 में विजय लक्ष्मी पंडित का निधन हुआ। कर्मठ और जुझारू , महिलाओं की पछधर विजय लक्ष्मी पंडित के योगदान का यह सदी त्र्रृणी रहेगी।



कमला नेहरु



 आपका जन्म 1 अगस्त 18 99 को दिल्ली में एक कश्मीरी परिवार में हुआ था पिता जवाहरलाल कौल एक साधारण व्यवसाई थे। उन दिनों लड़कियों का घर से बाहर निकलने की स्वतंत्रता नहीं थी। वह देखने में बहुत सुंदर थी इसलिए मोतीलाल नेहरू ने इंग्लैंड में पढ़ रहे अपने बेटे जवाहरलाल के लिए उन्हें पसंद किया । 8 फरवरी 1916 को दोनों का विवाह हो गया। 
 मोतीलाल नेहरू के घर में पश्चिमी वातावरण से तालमेल बैठाने में काफी परेशानी हुई ,  लेकिन कमला नेहरू ने भारतीय आचार विचार को छोड़े बिना जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक कार्य में रुचि लेना और सक्रिय सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। 
 कमला नेहरु ने स्वतंत्रता संग्राम में महिला जागरण तथा स्वदेशी के प्रचार में सक्रिय भाग लिया। एक समय ऐसा भी आया जब  सब नेताओं के जेल में बंद हो जाने पर उन्होंने पूरे प्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व किया । 1931 में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके लखनऊ की जेल में डाल दिया था।


 जेल में ही कमला नेहरु को क्षय रोग ने घेर लिया था,  देश विदेशों में उनका इलाज हुआ पर रोग से छुटकारा नहीं मिल  सका और 28 फरवरी 1936 को स्विजरलैंड के चिकित्सालय में उनका देहांत हो गया।
कमला नेहरू का योगदान भी देश के लिए सराहनीय रहा है।



सरोजनी नायडू


आपका जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था आपके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षा शास्त्री थे। उन्होंने हैदराबाद के निजाम कॉलेज की स्थापना की थी। आपकी मां वरदा सुंदरी कवयित्री थी और बंगाली भाषा में कविताएँ लिखती थी।  सरोजिनी नायडू 8 भाई बहन में सबसे बड़ी थी , उनके एक भाई वीरेंद्र नाथ क्रांतिकारी थे। और एक भाई हरिंद्रनाथ कवि , कथाकार और कलाकार थे। सरोजिनी नायडू होनहार छात्रा थी और उर्दू ,तेलुगु ,इंग्लिश बांग्ला और फारसी भाषा में निपुण थी । 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी।  हैदराबाद के निजाम ने उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी 16 वर्ष की आयु में उन्होंने इंग्लैंड जाकर पढ़ाई की।


वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुई , इस आंदोलन के दौरान वह गोपाल कृष्ण गोखले ,रविंद्र नाथ टैगोर ,मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट ,सीपी रामास्वामी अय्यर , महात्मा गांधीऔर जवाहरलाल नेहरू से मिली । भारत में महिला सशक्तिकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठाई, उन्होंने राज्य स्तर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह महिलाओं को जागरूक करने का कार्य किया । वर्ष 1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई। " सविनय अवज्ञा आंदोलन " में वह महात्मा गांधी  के साथ जेल भी गई । वर्ष 1942 में "भारत छोड़ो आंदोलन"  में भी उन्होंने 21 महीने के लिए जेल जाना पड़ा । स्वतंत्रता के बाद सरोजनी नायडू भारत की पहली महिला राज्यपाल बनी। उत्तर प्रदेश का राज्यपाल घोषित होने के बाद वह लखनऊ में बस गई । उनकी मृत्यु 2 मार्च 1949 को  दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई। स्वतंत्र भारत मैं आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही हैं।


कस्तूरबा गांधी


आपका जन्म 11 अप्रैल 1 869 में कठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था आपके पिता गोकुलदास मकान जी साधारण स्थिति के व्यापारी थे कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थी आपका भी बहुत कम उम्र में महात्मा गांधी से कर दिया गया था लगभग 12 वर्ष तक दोनों अलग-अलग रहे इंग्लैंड प्रवास से लौटने के बाद बापू को अफ्रीका जाना पड़ा
 यह 12 वर्ष की दूरियां थी जब वह 1896 में भारत आए तब बा को अपने साथ ले जा पाए ।
उन्होंने अपनी तरफ से अपने जीवन को सदा ओर सरल रखा। वह बापू के धार्मिक एवं देश सेवा के महा व्रतों में सदैव उनके साथ रहती यही उनके  जीवन का उद्देश्य बन गया था ।बापू के सत्याग्रह में वह  उनकी देखभाल करती रही । जब 1932 में हरिजनों के प्रश्न को लेकर बापू ने यरवदा जेल में अमरण उपवास आरंभ किया उस समय बहुत बेचैन हो उठी थी वह लगातार आन्दोलनों में भाग लेती रही उन्हें तभी चैन मिला जब बे यरवदा जेल भेज दी गई।
महात्मा गांधी की पथगामिनी बनकर सदा देश की आजादी के लिए अग्रसर रही।


 


 


                                        अंजना छलोत्रे