काफिया....ओ
रदीफ...समय हूँ मैं
मिसरा... मेरी कीमत को समझो मुझ को पहचानो समय हूं मैं
बहर....1222 1222 1222
धुन ....किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है
करो नादानियाँ मत मुझ को अब जानो समय हूँ मैं
सम्भल जाओ बड़ों की बात भी मानो समय हूँ मैं.
मुझे बरबाद मत करना न थक कर बैठ जाना तुम
साध कर लक्ष्य उट्ठो, मुझको फिर थामो, समय हूँ मैं
करो मन की जो चाहत आसमां तक की तुम्हारी हो
वो दिन लौटेगा खुशियों से भरा मानो समय हूँ में.
बिछे हैं जाल साज़िश के यहाँ चारों तरफ देखो
बिगड़ती बात को फिर से संवारो लो समय हूँ मैं
अजब है आदमी के खून का प्यासा हुआ आदम
मगर दर पर खड़ा है अम्न दुलराओ समय हूँ मैं.....