ग़ज़ल

ग़ज़ल


रात कटती भी नही चाँद ये ढलता भी नहीं,
कोई दिल की  हालत को समझता भी नहीं.



आड़ लेते हैं किताबों की गुलाबों के लिए,
अश्क आँखों में और आब छलकता भी नहीं. 


चाक-चौबंद है परकोटे की पहरेदारी,
ये मुहब्बत का नशा क्या है उतरता भी नहीं.


उनसे फिर बात हुई एक मुलाकात हुई,
ख़्वाब बदलेगा कभी सच में ये होता भी नहीं .


हम तो आदत से मजबूर और तुम फितरत से,
दर्द सहती हूँ मगर तू है कि सुधरता भी नहीं..........