ग़ज़ल
जुबा से कडबाहट नहीं चाहते है
फिजूल की बातें नहीं चाहते हैं
छट जाये अब काली रात के साये
सुबह हो खुशनुमा सभी चाहते हैं
थक गए है ख्वाहिशों के हाथोँ
पल दो पल आराम ही चाहते हैं
मत करो बदजुबानी इस कदर
मीठे दो बोल बोलो वही चाहते हैं
बहुत धोखा खा चुके हैं अब तक
थोडी सी शराफत सभी चाहते हैं..।।