ग़ज़ल
प्यार हुआ है सोच के अच्छा लगता है ,
दर्द से रिश्ता बहुत पुराना लगता है ।
खामोशी ने आज जुबां भी खोली है ,
गम से दामन सहल छुड़ाना लगता है।
पीर उठी है सीने में फिर जाने क्यों,
जाग उठा इक रोग पुराना लगता है ।
बहुत कहा अनकहा है फिर भी शेष बहुत ,
परत परत खुलता इक किस्सा लगता है।
अभी जमाना आज भलाई का भी है ,
यही समझाना ही तो सपना लगता है ।
रिश्ते बदल गये हैं तो क्या हुआ कहो,
साथ अभी अपनो का अच्छा लगता है।
रंजो गम की मारी सवि इस दुनिया में ,
प्यार की माला जपना अच्छा लगता है।