ग़ज़ल
रात काट कर जाने वाला,
सुबह कौन जगाने वाला .
मैं रूठू या मानूं अब तो,
कौन है मुझे मनाने वाला .
किसके मन को टोह रहे हो,
कोई नहीं समझने वाला .
हद है पीछा क्यों करते हो ,
हाथ नहीं कुछ आने वाला .
महफिलों में किसे खोजते,
मुँह को कौन छुपाने वाला .
आदम का है कौन ठीकाना,
मुकर जाये कब आने वाला...............
वह दुश्मन फना हो गया
अब कौन तंज कसने वाला......।