ग़ज़ल

 


ग़ज़ल


काफिला जिस तरफ चला होगा,
 एक श्मशान   बंह  रहा होगा .


जिसको चाहा  कभी शिद्दत से .
वही  नफरत  निबाहता  होगा .


इन दिनों वो नज़र नहीं आता ,
किन खयालों में खो गया होगा .


उसकी तुमको कुछ खबर ही नहीं ,
वह   बुलंदी  को  छू  रहा  होगा. 


तोड़कर तुमसे प्यार का रिश्ता ,
वह भी टुकड़ों में जी रहा होगा .


बस रहा है वह सवि हर दिल में ,
परचमें अम्न को पकड़ा होगा........