ग़ज़ल
इस कदर वो दिल दुखाते आजकल,
प्यार कब सच्चा निभाते आजकल ।
कर रहे बात पर गुस्ताखियाँ ,
मुझको नीचा क्यों दिखाते आजकल ।
दिल्लगी दिल पर लगी अब बन गई,
लकड़ियाँ गीली जलाते आजकल।
है तमाशा और ये तो भीड़ है,
तालियाँ सब ही बजाते आजकल।
तंगहाली देखिए रिश्तों की अब,
झूठ ही कसमें खिलाते आजकल ।
हम चने के झाड़ पर थे कब चढ़े,
आप जो अक्सर झुकाते आजकल ।
क्या हुआ मेरी समझ को क्या हुआ ,
गैर की सुनते सुनाते आजकल।