वैदिक काल में स्त्रियों को शिक्षा का पूरा अधिकार था तथा समाज में उनका विशिष्ट स्थान था. स्त्रियां कृषि कार्यों और युद्ध अस्त्रों के निर्माण का कार्य भी करती थी. वे अपने पतियों के साथ युद्ध में भाग लेती थीं व धनुर्वेद और अश्वसंचालन में निपुण थी. उन्हें भी पुराणों को अभ्यास करने, मंत्रों का उच्चारण करने व वेदों का अध्ययन करने की पूरी स्वतंत्रता थी. उस सयम कुछ स्त्रियां ऋषि भी थीं व वेद मंत्रों की शिक्षा भी देती थीं. वे पुरूषों के साथ वाद-विवाद भी करती थीं. उस समय की विदुषी नारियों में इंद्राणी, मैत्रेयी, गार्गी, लोपमुद्रा, सर्पज्ञानी आदि के नाम लिये जा सकते हैं. लड़कियों को उपनयन और यज्ञोपवीत की उपाधि दी जाती थी. स्त्रियां अर्धांगिनी कहलाती थीं और यज्ञादि कर्मों में भाग लेती थीं.
कन्या विद्यार्थियों को दो वर्गों में बांटा गया था : ब्रह्मावदिनी और सद्यवधु, ब्रह्मवदिनी वेद, वेदांग और उपनिषदों का पूरे समय अध्ययन करती थीं. उनमें से कुछ जीवन भर भी ब्रह्मचारिणी रहती थीं. लेकिन ज्यादातर समान पद व स्थिति के ऋषि के साथ विवाह कर लेती थीं. सद्यवधु अपनी शिक्षा बीच में छोड़ देती थीं और 18 या 20 वर्ष की आयु में विवाह कर लेती थीं. स्त्रियों की शिक्षा में घर की देखभाल करने के लिए आवश्यक सभी उपयोगी कलाओं का विशिष्ट स्थान था. उन्हें संगीत, नृत्य, कढ़ाई पाककला, बुनाई, सिलाई, चित्रकारी पेंटिंग, पशुपालन और दुध दुहना आदि सिखाया जाता था. उन्हें अनाजों का संग्रहण, पत्रलेखन, प्रारंभिक बहीखाते, आंतरिक सज्जा और शारीरिक सौंदर्य बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाती थी. अचार और मशाला बनाना व उनका संरक्षण करना भी उनकी शिक्षा का एक भाग था बच्चों को देखभाल, सुगंध शास्त्र और बच्चों की दवाइयों का प्रारंभिक ज्ञान भी पाठ्यक्रम में शामिल था. भारत अपने समकालीन देशों की तुलना में स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे था.
उत्तर वैदिक काल में स्थितियां बदल गयी थीं. मनु ने कुछ नियम बताये जिनके अनुसार स्त्रियों को वेदाअध्ययन का अधिकार नहीं है. उनमें मंत्रों का उच्चारण करने की योग्यता भी नहीं है. मनु के अनुसार स्त्रियों को केवल घर के कार्य करना चाहिए व अपने पति की सेवा करना उनका धर्म है. यह उनके लिए आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के बराबर है. उन्होंने अन्य कई नियम बताये जिनका पालन करना स्त्रियों के लिए अनिवार्य था. विवाह की आयु भी कम हो गई थी. उस समय स्त्रियों को वेदों की शिक्षा के स्थान पर संगीत, नृत्य, चित्रकला व अन्य ललित कलाओं के सीखने पर अधिक जोर दिया जाने लगा. देखा जाए तो इस काल में जो विचारधाराएं थीं वही काफी बदले हुए स्वरूप में आज भी कायम हैं. ये सभी स्त्रियों को दमित